रावी न्यूज गुरदासपुर
दरबार श्री पिंडोरी धाम में 14वें आचार्य तपोमूर्ति वैष्णवाचार्य सदगुरु श्री गोबिंद दास जी महाराज जी की जयंती बड़े श्रद्धा और भक्ति भाव से मनाई गई। इस अवसर पर आयोजित विशाल सत्संग समारोह में दरबार श्री पिंडोरी धाम के वर्तमान पीठाधीश्वर श्री महंत रघुबीर दास जी महाराज ने संगत को आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा कि — “ज्ञान तभी सार्थक होता है जब उसके साथ कर्म जुड़ा हो। महंत रघुबीर दास जी महाराज ने अपने प्रवचनों में कहा कि अभिमान ब्यक्ति को विनाश की ओर ले जाता है ।
आज का इंसान केवल भक्ति की बातें करता है, लेकिन उसका जीवन कर्म से बहुत दूर हो गया है। केवल उपदेश सुनना ही पर्याप्त नहीं, बल्कि संत महात्माओं की बातों को अपने जीवन में कर्म रूप में धारण करना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि “भक्ति केवल वाणी तक सीमित न रहे, उसे कर्म के रूप में ढालना ही सच्ची साधना है। महाराज जी ने आगे कहा कि समय एक अमुल्य धन है । इंसान को समय का सदुपयोग करना चाहिए, क्योंकि जो व्यक्ति समय को व्यर्थ गंवाता है, वह जीवन के मूल उद्देश्य से भटक जाता है। समय का दुरुपयोग न हो, इसलिए हर व्यक्ति को अपने जीवन में नियमितता, अनुशासन और सेवा भाव को अपनाना चाहिए। समारोह की शुरुआत प्रातःकालीन पूजा-अर्चना से हुई, जिसके उपरांत दरबार परिसर में विशाल सत्संग सभा का आयोजन किया गया। इस दौरान संगत ने बड़ी श्रद्धा से भजन-कीर्तन का आनंद लिया। महंत रघुबीर दास जी महाराज ने अपने मधुर भजनों से उपस्थित भक्तों को भाव-विभोर कर दिया।
अपने प्रवचन के दौरान महाराज जी ने सदगुरु श्री गोबिंद दास जी महाराज की पावन जीवनी पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि महाराज जी का जन्म संवत 2003 विक्रमी, शुक्ल द्वितीय, कार्तिक मास (27 अक्तूबर 1946 ई.) को गांव मियाणी, जिला होशियारपुर के एक ब्राह्मण परिवार में श्री प्रद्युम्न कृष्ण जी के घर हुआ। बाद में तपोमूर्ति वैष्णवाचार्य सतगुरु बाबा राम दास जी महाराज ने उन्हें 1 फरवरी 1979 को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। अपने जीवनकाल में श्री गोबिंद दास जी महाराज ने न केवल दरबार श्री पिंडोरी धाम के विकास कार्यों में योगदान दिया, बल्कि समाज सेवा और मानव कल्याण के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण कार्य किए। सत्संग के उपरांत विशाल भंडारे का आयोजन किया गया, जिसमें हजारों श्रद्धालुओं ने प्रसाद ग्रहण किया। पूरे कार्यक्रम के दौरान भक्ति और श्रद्धा का वातावरण बना रहा। महंत रघुबीर दास जी महाराज ने अंत में कहा कि “जो व्यक्ति समय, ज्ञान और कर्म का संतुलन साध लेता है, वही जीवन में सच्चा सुख और शांति प्राप्त करता है।







